वाराणसी में संस्कृति संसद का हुआ आयोजन, देश दुनिया के बौद्धिक हुए सम्मिलित

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हरिओम कुमार, वाराणसी।

मुख्य बिन्दु-

  • कैलाश से कन्याकुमारी तक के भारत का संकल्प पारित
  • हिन्दू संस्कृति के आधार पर भारत पुनः अखण्ड होगा
  • सनातन धर्म ऐसा धर्म है जो सभी को समेटने की क्षमता रखता है
  • भारत संस्कृति के सहारे पुनः बन सकता है विश्वगुरु

संस्कृति संसद 2021 का आयोजन रुद्राक्ष अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं सम्मेलन केंद्र, वाराणसी में किया गया। जिसमें देश दुनिया के बौद्धिक नेतृत्वकर्ताओं के साथ हजारों संस्कृति प्रेमियों ने भाग लिया। इस तीन दिवसीय संस्कृति संसद 2021 का आयोजन 12, 13 एवं 14 नवंबर को किया गया।

संस्कृति संसद के उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय संत समिति के मुख्य निदेशक स्वामी ज्ञानदेव सिंह ने कहा कि हिन्दू संस्कृति के आधार पर पुनः भारत अखण्ड होगा। उन्होंने कहा कि वेद भारतीय संस्कृति का मूल है तथा वेदों का मूल संस्कृति एवं संस्कृत है। माता ही हमारी प्रथम गुरु है इसीलिए हमें यह शिक्षा दी जाती है  मातृ देवो भवः, अतिथि देवो भवः, आचार्य देवो भवः, हमारे लिए यह सभी महत्वपूर्ण है।

उन्होंने सभी संप्रदायों के मूल भेद और सभी संस्कृति के वेदों को बताया तथा अंत में कहा कि भारत अखंड था और हिन्दू संस्कृति के आधार पर ही पुनः अखण्ड होगा। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि शासन को चलाने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है। आज विधर्मियों द्वारा हमारी संस्कृति पर अत्याचार किए जा रहे हैं। इसके जवाब में युवाओं को संतों के साथ जुड़ना चाहिए। संतों के प्रयासों से अंग्रेजों के द्वारा गुलाम बनने के बाद भी हमारी परम्परा और संस्कृति जीवित रही।

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आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. इंद्रेश कुमार ने कहा कि सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो सभी को समेटने की क्षमता रखता है। विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने कहा कि ऐसे आयोजनों से यह राष्ट्र फिर से अखण्ड होगा। आज पूरा विश्व भारत के लोगों को हिन्दू ही मानता है। जब विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई थी तब भी समाज की व्यवस्थाओं को कैसे स्थापित किया जाए इस पर चर्चा होती थी। यहां का मूल निवासी हिन्दू कितना भी कमजोर हो लेकिन संत समाज का आदर करता ही है।

श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री रामयत्न शुक्ल ने कहा कि इस संस्कृति संसद का आयोजन बहुआयामी विषयों को लेकर किया जा रहा है। हमारे धर्मशास्त्री विद्वान ग्रंथों की त्रुटियों पर काम कर रहे हैं।
गंगा महासभा और अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने सनातन धर्म का उपहास और अपमान करने वालों को बताया कि हमारे धर्म, ग्रंथ और वेद के अतिरिक्त उपनिषद और शास्त्र को संवाद के लिए बेहतरीन मार्ग हैं। उन्होंने इसमें पूछने और बताने की प्रक्रिया को हमारे संस्कृति का संवाद शास्त्र बताया। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के बाद सनातन धर्म के सारे मार्ग खुल जाएंगे।

भारतीय संस्कृति की प्राचीन परम्परा की चर्चा करते हुए आयोजन समिति के संरक्षक और धर्मार्थकार्य व संस्कृति राज्यमंत्री नीलकण्ठ तिवारी ने कहा कि हमारी संस्कृति में सभी देवी-देवता विराजमान है। उन्होंने कहा कि 108 वर्ष पुरानी मूर्ति जो कनाडा में रखी हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से वह भारत आ गई। हजारों करोड़ की परियोजनाएं हमारी संस्कृति और परम्परा को मजबूत बनाने के लिए ही चल रही हैं।

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गंगा महासभा के संगठन महामंत्री गोविन्द शर्मा ने कहा कि आज पूरे विश्व में हिन्दूजन निवास करते हैं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए संस्कृति संसद में चर्चा होती है। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति वह है जिसमें सुदृढ़ करने की प्रक्रिया निरंतर चलती है। यह प्रक्रिया भी सनातन है। भारत की संस्कृति पुरातन है मगर इसमें नई बनाने की क्षमता रखता है, जो मेरी संस्कृति, आपकी संस्कृति और पूरे राष्ट्र की संस्कृति है। इसे दुनिया मानती है। इसी संस्कृति के आधार पर भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है। संस्कृति संसद में प्रसिद्ध इतिहासकार कोनराड एल्स्ट ने कहा कि हिंदुस्तान में सैकड़ों वर्षों से हिंसक हमले शुरू हुए। इस हमले में 11वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी के शुरुआत तक लगभग 8 से 10 करोड़ हिन्दुओं का नरसंहार हुआ।

3 दिनों तक चले इस संस्कृति संसद मे विभिन्न विषयों पर कई वक्ताओं ने चिंतन एवं विमर्श किया। जिसमें इतिहासकार विक्रम संपथ, भाजपा के राष्ट्रीय सचिव सुनील देवधर, लोकसभा सांसद जामयांग शेरिंग नामग्याल, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय, फिल्म कलाकार अखिलेंद्र मिश्र, फिल्म कलाकार गजेंद्र चौहान, दूरदर्शन के अशोक श्रीवास्तव,केरल के पद्मनाभ मंदिर के अध्यक्ष महाराजा आदित्य वर्मा, सांसद प्रताप चंद्र सारंगी, आचार्य विनय झा, मालिनी अवस्थी, प्रोफेसर आर.के. पांडेय, प्रोफेसर सी.पी सिंह, शिक्षाविद डॉ मनु वोरा, प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह ने भी विभिन्न सत्रों में विचार व्यक्त किए।

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संस्कृत संसद के समापन सत्र में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि भविष्य में कैलाश से कन्याकुमारी तक का भारत हमारा होगा और उसे चीन से मुक्त कराएंगे। इसी क्रम में समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक भेद के समापन, पूजा-स्थलों को प्राचीन मूल स्थिति में करने, फिल्मों में मान्यता एवं विश्वास विरोधी प्रस्तुति रोकने सम्बंधी कानून बनाने, चीनी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी अपनाने, गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाए रखने, पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण एवं सनातन संस्कृति के अनुसार जीवन जीने सम्बंधी प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार हुए। ये प्रस्ताव गंगा महासभा के संरक्षक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार जी द्वारा प्रस्तुत किए गए।

समापन सत्र के अध्यक्ष एवं जगद्गुरु रामानन्दाचार्य रामराजेश्वाराचार्य ने कहा कि काशी सनातन संस्कृति का केंद्र है और हमारी संस्कृति की रक्षक है। यहां आयोजित संस्कृति संसद की चर्चा महत्वपूर्ण रही और जबतक ‘ओम’ का प्रवाह जारी है तबतक हिन्दू संस्कृति का प्रवाह जारी रहेगा।

समापन समारोह के मंच पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी, गंगा महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमस्वरुप पाठक, श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी, राज्यसभा सांसद रुपा गांगुली, कार्यक्रम की उपाध्यक्षा रेश्मा सिंह उपस्थिति रही।


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