भारत और कई अन्य एशियाई संस्कृतियों में आभूषण पहनने के विशिष्ट नियम और परंपराएं होती हैं। विशेष रूप से सोने के आभूषणों के संबंध में कुछ मान्यताएं और धार्मिक कारण होते हैं जो यह बताते हैं कि सोने के पायल को कहां पहना जाए और कहां नहीं। महिलाएं पैरों में सोने के पायल क्यों नहीं पहनतीं, इसके पीछे गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं।
धार्मिक कारण
- देवी लक्ष्मी का प्रतीक: सोना हिन्दू धर्म में धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। पैरों को शरीर का सबसे निम्न स्तर और अपवित्र भाग माना जाता है। इसलिए देवी लक्ष्मी के प्रतीक को पैरों में पहनना अपवित्र माना जाता है।
- धार्मिक मान्यता: हिन्दू धर्म में सोना एक पवित्र धातु है। इसका उपयोग विशेष धार्मिक अनुष्ठानों और देवी-देवताओं की पूजा में किया जाता है। इसे पैरों में पहनने से इसके पवित्रता का अपमान माना जाता है और धार्मिक दृष्टिकोण से इसे सही नहीं माना जाता है।
सांस्कृतिक और सामाजिक कारण
- सामाजिक प्रतिष्ठा: सोने को शरीर के ऊपरी हिस्से में पहनना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। यह व्यक्ति के सम्मान और उनकी उच्च स्थिति को दर्शाता है। पैरों में सोना पहनना समाज में सोने की पवित्रता और प्रतिष्ठा को कम करने वाला माना जाता है।
- पारंपरिक आभूषण: पारंपरिक रूप से पैरों में चांदी का पायल पहनने का प्रचलन अधिक है। चांदी को ठंडा धातु माना जाता है। यह शरीर को ठंडक प्रदान करता है। जबकि सोना को गर्म धातु माना जाता है, जिसे पैरों में पहनने के लिए सही नहीं माना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अलावा अन्य कारण
- आर्थिक पहलू भी जिम्मेदार: चांदी की तुलना में सोना महंगा होता है। इसलिए भारत में लोग पैरों में खासकर चांदी के पायल पहनते हैं। लेकिन इसमें सबसे बड़ा महत्व मान्यताओं और धार्मिक दृष्टिकोण का है। इसके साथ पैरों में सोने के आभूषण को सुरक्षित रखना मुश्किल काम है। यदि यह खो गया तो बहुत आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
- आभूषणों का डिज़ाइन: पायल सामान्यतः बड़े और विस्तृत डिज़ाइन में होती हैं, जिन्हें सोने में बनाना और पहनना दोनों ही आर्थिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से सही नहीं होता है।