बिहार डेस्क, मोतिहारी। देश के जानेमाने पत्रकार और प्रसार भारती भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष जगदीश उपासने ने कहा है कि यह समय राष्ट्र के नवनिर्माण की पत्रकारिता का है, भारतीय मूल्यबोधों के जागरण का है। कोरोना जैसी त्रासदी के समय देश की छवि को मीडिया के जरिए जिस तरह से प्रभावित करने की कोशिश की गई है वह खुद पत्रकारों के लिए और समाज के लिए भी विचारणीय है। वे हिंदी पत्रकारिता दिवस पर महात्मा गांधी पत्रकारिता विवि की ओर से महामारी कालीन पत्रकारिताः चरित्र और चुनौतियां विषय पर आयोजित राष्ट्रीय ई संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
जगदीश उपासने ने कहा कि पत्रकारिता में समाज को बदलने की ताकत है। चाहे स्वतंत्रता आंदोलन हो या आपातकाल या ऐसा कोई अन्य अवसर, मीडिया ने तमाम परिस्थियों में अपना दायित्व समझा। भारतीय मूल्यबोधों की स्थापना में मीडिया की बड़ी भूमिका रही है लेकिन कोरोना जैसी त्रासदी में पश्चिमी मीडिया के प्रभाव में आकर भारतीय मीडिया के एक वर्ग ने ही जिस तरह से देश की नकारात्मक छवि बनाई है और पश्चिमी मीडिया की तर्ज पर जैसा नकारात्मक अभियान छेड़ा है वह दुखद है। यह गैरजिम्मेदाराना भाव तात्कालिक लाभ तो दे सकता है लेकिन इससे अंततः कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।
महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का उल्लेख करते हुए जगदीश उपासने ने इस बात पर बल दिया कि समाज का नवनिर्माण और सत्यं शिवम सुंदरम की भावना ही पत्रकारिता का लक्ष्य है जिसे गंभीरता से समझना होगा। उन्होंने कहा कि मीडियाकर्मियों के लिए यह प्रश्न भी मंथन का है कि राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में उनकी क्या और कितनी भूमिका ? उपासने ने इस बात पर जोर दिया कि मीडिया के लिए नियमन जैसी व्यवस्था इसी नजरिए से लाई गई है जिससे स्थिति निश्चित रूप से बदलेगी।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि वर्तमान समय में सकारात्मकता केंद्रित पत्रकारिता की बहुत जरूरत है। पत्रकारों को ध्यान रखना होगा कि विश्वसनीयता का संकट अभी की सबसे बड़ी चुनौती है। उनका कहना था कि पूर्वाग्रह और व्यक्तिगत प्रतिबद्धताएं कई बार दृष्टि को बाधित कर देती हैं जिससे दायित्वबोध खत्म हो जाता है और हम भूल जाते हैं कि हमारे लिए क्या करना उचित होगा लेकिन अच्छी बात यह है कि मीडिया का जो वर्ग तथ्यों को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करता रहा है उसे अब समाज के भीतर से ही तत्काल चुनौती मिलने लगी है।
पत्रकारिता के विद्यार्थियों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि यह ध्यान रखना होगा कि राष्ट्र के रूप में हमारी छवि किसी रूप में खंडित, प्रभावित न हो क्योंकि राष्ट्र की छवि किसी भी व्यक्ति या संगठन से हमेशा बड़ी होती है। उन्होंने कहा कि मीडियाकर्मी को हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ध्येय और श्रेय का मार्ग क्या है? उन्होंने हिंदी पत्रकारिता दिवस पर इस आयोजन के लिए मीडिया विभाग के शिक्षकों का उत्साहवर्द्धन करते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों से न केवल विभाग बल्कि विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा भी बढ़ी है।
प्रतिकुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी ने स्वतंत्रता आंदोलन और आपातकाल सहित अन्य अवसरों का जिक्र करते हुए कहा कि राष्ट्रीयता के विकास और अन्य सामाजिक बदलावों में मीडिया की बड़ी भूमिका रही है। चुनौतियां अब भी कम नहीं हैं।
इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए मीडिया अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ.प्रशांत कुमार ने कहा कि देश में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित युगल किशोर शुक्ल ने उदंत मार्तंड साप्ताहिक की शुरुआत 1826 में 30 मई को नारद जयंती के दिन ही की थी। उन्होंने बताया कि विभाग आज से अगले एक महीने तक चलने वाले विशेष कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहा है। मुख्य अतिथि उपासने का परिचय विभाग के सहायक प्राध्यापक डा.सुनील दीपक घोडके ने कराया। अतिथियों का आभार व्यक्त विभाग के सहायक प्राध्यापक डा.साकेत रमण ने किया। कार्यक्रम के संयोजक विभाग के सहायक प्राध्यापक डा.परमात्मा कुमार मिश्र थे।
इस अवसर पर विभाग के सह प्राध्यापक डा.अंजनी कुमार झा और सहायक प्राध्यापक डा.उमा यादव सहित संकाय के अधिष्ठाता विकास पारीक, ओएसडी प्रशासन डा.राजीव कुमार, हिंदी विभाग के डा.राजेंद्र सिंह, डा.सुनील महावर, जनसंपर्क अधिकारी शेफालिका मिश्रा, कविता जोशी सहित सैकड़ों शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का लाइव प्रसारण फेसबुक और यूट्यूब पर भी किया गया।